ज़िन्दगी के सफर की हद है, वहा तक, के जहा तक इसके निशां रहे... चले चलो वहा तक, जहा तक ये नीला आसमान रहे.. ये क्या के उठाये कदम और आ गई मंज़िल... मज़ा तो तब है के पैरो मे कुछ थकान रहे |
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